ओआरओपी आंदोलन में पहुंचे हरजिंदर सिंह।
पंजाब के पटियाला जिले के रहने वाले पूर्व सैनिक दफेदार हरजिंदर सिंह दिल्ली के जंतर मंतर में हुई सैनिक आक्रोश रैली में दो छोटी छोटी थैलियों में मिट्टी भरकर लाए। यहमिट्टी पंजाब की उन ऐतिहासिक जगहों से लाई गई थी जहां देश के सैनिकों ने लड़ाई लड़ी थी, इसके अलावा वह जम्मू- कश्मीर की उन जगहों की भी मिट्टी लाए हैं जहां आज भी आतंकवादियों से लड़ते हुए सैनिकों का खून गिरता है।
जवानों का खून सिर्फ जंग में ही नहीं गिरता
हरजिंदर ने याद दिलाया कि न केवल जंग में बल्कि बिना जंग के भी सैनिकों का खून दुश्मनोंसे लड़ते हुए गिरता है। हरजिंदर ने पंजाब और जम्मू में सरहद पर तैनात जवानों को कसम भीदिलाई कि देश की हिफाजत जान देकर करनी है। उन्होंने कहा कि सरकार से लड़ाई उनके जैसेपूर्व सैनिक लड़ेंगे।
मोटरसाइकल से दिल्ली पहुंचे
सेना से 2007 में रिटायर हुए दफेदार हरजिंदर सिंह ने मोटरसाइकल से वन रैंक वन पेंशन केसमर्थन में अपनी यात्रा पांच दिसंबर से शुरू की और आज दिल्ली के जंतर मंतर पर खत्म की हरजिंदर के दादा क्रांतिकारी थे तो पिता फौजी। वह अपने बेटे को भी फौजी बनाने में जुटे हैं फिलहाल वे सरकार से नाराज हैं किउसने ओआरओपी का अपना वादा पूरा नहीं किया जिस वजह से पूर्व सैनिकों का गुजारा बढ़ी मुश्किल से पेंशन के सहारे होता है।
काले कपड़े पहनकर सरकार का विरोध
हरजिंदर कहते हैं मुझे 14000 रुपये पेंशन में मिलते हैं। कैसे इतनी राशि में अपने परिवार कागुजारा करूं। 35 साल में रिटायर हो गया और फौज से बाहर कोई नौकरी भी नहीं मिली। वहकाले रंग की मोटरसाइकल और काले कपड़े पहनने का कारण सरकार से विरोध बताते हैं। वहकहते हैं क्या करें आज न तो प्रधानमंत्री और न ही रक्षा मंत्री को सैनिक की परवाह है? इसे क्याकहा जाए, छह महीने हो गए जंतर मंतर पर पूर्व सैनिक धरने पर बैठे हैं लेकिन सरकार का कोई भी
नुमाइंदा यहां बात करने नहीं आया? क्या यहां आने से उनका सम्मान घट जाता इससे पता लगता है कि सरकार और अधिकारियों की नजर में सेना क्या मायने रखती है?
by the kind courtesy of "Report My Signal"
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